Diya Jethwani

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लेखनी प्रतियोगिता -16-May-2023... कहानी घर घर की...

मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ निशा.... ऐसा कदम मत उठाओ... कम से कम बच्चों का तो सोचो...। 


बस किजिए बहन जी... मेरी बेटी को क्यूँ बोल रहीं हैं आप...अपने बेटे को तो कुछ बोला नहीं जाता...। 

बहन जी.... बच्चे हैं.... ये सब तो आप भी समझतीं हैं... उनको समझाने की बजाय....आप बेटी को ले जाने की बात कर रहीं हैं..! 

हां तो क्या करूँ... जब से शादी हुई हैं... रोज मुझे फोन करके बताती हैं... कितना समझोता करेगी... ओर क्यूँ करेगी... अभी मैं हूँ... उसकी तुम सभी से भी अच्छी देखभाल कर सकतीं हूँ...। 


बहन जी.... बात को समझने की कोशिश किजिए... बच्चों का सोचिए... ये तो बच्चे हैं... आप ओर हम तो समझ सकते हैं... लड़ाई झगड़े तो हर घर में होतें हैं... ओर फिर निशा ने मुझसे तो कभी कुछ कहा ही नहीं... आज अचानक सामान पैक करना... आपका इस तरह आना... 


आप तो घर में होकर भी आंखों पर पट्टी बाँध कर बैठी हैं बहन जी... । लेकिन मैं तो अपनी बेटी की हर तकलीफ से वाकिफ हूँ...। चल निशा... उठा सामान...। 


हां हां... ले जाइये... 
अचानक आवाज सुनकर कमरे से हरीश बोलता हुआ आया...। 
जाइये मम्मी जी... ले जाइये अपनी बेटी को.... । 


हरीश की माँ :- हरीश... क्या बकवास कर रहा हैं... तु चुपचाप अंदर जा... मैं बात कर रहीं हूँ ना...। 


क्या बात करेंगी आप माँ... आपको पता भी हैं बात हुई क्या हैं..! आज तक एक लब्ज़ भी कभी आपको बताया हैं इसने... कभी एक लब्ज़ बात भी की हैं आपसे... । लेकिन मम्मी जी से रोजाना घंटों बात करनी हैं...। मैं भी सालों से समझा रहा हूँ ओर देख भी रहा हूँ. .... आप कितना सपोर्ट करती हैं... कितना काम करतीं हैं...बच्चों की हर जिम्मेदारी आप पर हैं... लेकिन उसके बाद भी रोजाना इसका रोना -धोना , शिकायत चालू ही रहतीं है... । बार बार बस एक ही रट.... मुझे अलग रहना हैं...। किससे अलग करुं इसे माँ.... आपसे...।। 
आप अकेले कहाँ रहोगे.... कैसे रहोगे... कभी सोचा हैं इसने...? 
आप ले जाइये इसे मम्मी जी... जब तक ये आपकी बनकर रहेगी... तब तक ये हमारी कभी नहीं बन पाएगी...। 


हां तो इसमें गलत क्या बोल दिया मेरी बेटी ने...। आजकल तो सब अलग रहते हैं... साथ में रहता कौन हैं आजकल के जमाने में...। मेरी बेटी तो फिर भी नौ सालों से साथ रह रहीं हैं...। अब उसे नहीं समझ आ रहा तभी कह रही हैं ना..! 

ये आपकी गलतफहमी हैं की अब उसे नहीं समझ आ रहा... सच तो ये हैं मम्मी जी की अब बच्चे बड़े हो गए हैं... उनको संभालना नहीं पड़ता... अपने आप खुद का काम कर लेते हैं..। जब तक छोटे थे... तब तक माँ की जरूरत थीं...।


बस करो हरीश..बहुत अपमान कर चुके तुम निशा का... अब मैं तुमसे कोर्ट में ही मिलूंगी... चलो बेटी...। 


रुकीए बहन जी... मैं बात करतीं हूँ हरीश से... ऐसे जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेते...। इनको अलग ही रहना हैं ना... मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं... मैं... 


एक मिनट माँ.... आप प्लीज... कुछ मत... 

हरीश... बेटा... बच्चों का सोच.... 


ठीक हैं माँ.... तुम कहतीं तो मैं अलग घर ले लेता हूँ...। लेकिन मेरी एक शर्त है मम्मी जी...। 

शर्त... कैसी शर्त...?? 

शर्त ये हैं की मैं अपनी माँ को अकेला छोड़ूगा तो निशा को भी अपनी माँ यानि आपको छोड़ना पड़ेगा..। मंजूर हो तो निशा को यहीं छोड़ जाइये.... मैं कल ही घर का इंतजाम कर लूंगा... वरना आप इसे अपने साथ लेकर जा सकतीं हैं...। 



तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं क्या हैरी... मैं मम्मी को क्यू छोड़ू... उनका क्या लेना देना .... झगड़ा तो हमारा हुआ हैं ना... मेरी माँ को क्यूँ बीच में ला रहें हो..। 


वहीं तो मैं भी तुमसे कह रहा था अंदर निशु की झगड़ा हमारा हैं तो... तुम मम्मी जी को क्यूँ फोन करके बुला रहीं हो...। 


लेकिन मुझे मम्मी जी के साथ नहीं समझ आ रहा.. इसलिए अलग होना हैं.. इसमें गलत क्या हैं..? 


कुछ गलत नहीं हैं... तुम्हें मेरी माँ समझ नहीं आ रहीं... ओर मुझे मम्मी जी का इस घर में दखल देना समझ नहीं आ रहा...। मैं इनसे अलग हो रहा हूँ ओर तुम मम्मी जी से हो जाओ...। ये ठीक हैं ना..!! 


हैरी.... ऐसा कभी नहीं होगा.... मैं मम्मी को कभी नहीं छोड़ुंगी...। 


हरीश और निशा के बीच ये बहस हो ही रहीं थीं की निशा की मम्मी बोली :- हरीश बेटा.... मैं सब समझ गई की तुमने निशा से ऐसी शर्त क्यूँ रखीं... मुझे माफ कर दो बेटा... मैं निशा को कुछ दिन अपने साथ लेकर जा रहीं हूँ... ओर इसे भी अच्छे से समझा देतीं हूँ... तुम बिल्कुल फिक्र मत करो...। 


निशा की माँ निशा को जबरदस्ती अपने साथ वहां से लेकर चल दी...। 




हरीश ने अपनी माँ को गले से लगाया ओर हंसते हुए कहा :- अब वो अच्छे से सब समझा देगी माँ... तुम बिल्कुल फिक्र मत करो.. । 

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ये कोई कहानी नही बल्कि आज के दौर की कड़वी सच्चाई हैं...। जिन घरों में बेटी की शादी करवा देने के बाद भी उसके ससुराल में उनके पेरेंट्स का हस्तक्षेप रहता हैं....वहां अक्सर ऐसा देखने को मिलता हैं....।

ऐसे मामलों में लड़का दो तरह के फैसले लेता हैं.... पत्नी की बात मानकर पेरेंट्स को वृद्धाश्रम में छोड़ आता हैं या फिर पेरेंट्स का सोचकर पत्नी को तलाक दे देता हैं...। 


घर बनाने में सालों लग जातें हैं लेकिन बिगाड़ने के लिए चंद मिनट ही काफी होतें हैं...। सोचें समझे और कुछ फैसले बेटी पर भी छोड़ दे...। 

उनका ख्याल रखना गलत नहीं हैं... वो आपकी बेटी हैं.... लेकिन उसे परिवार का महत्व बताएं...। जहाँ ससुराल वाले गलत करते हैं.... वहां उनका अवश्य साथ दे..। लेकिन अगर बात करने से... रिश्ते बन सकते हैं तो उन्हें जोड़ कर रखें...। 



कुछ गलत लगा हो तो क्षमा चाहते हैं...। 🙏



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9 Comments

Nice 👍🏼

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Punam verma

17-May-2023 09:10 PM

Very nice

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madhura

17-May-2023 03:24 PM

very nice story mam

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